पहला नशा पहला नाशा बचपन में चांद को करीब से देखने का,, नशा बढ़ता ही गया उम्र के साथ और हम अपने चांद को ढूंढने लगे उनके मशुम चेहरे में हमें क्या पता था, ये नशा कैसा हैं , जिसके सिर्फ दूर से दीदार करने से ही, दिल की धड़कने बढ़ने लगती थी, अब तो सिर्फ एक ही चाहत है,,।। उनके साथ उम्र भर साथ चलने की । पहला नशा