चिलचिलाती धूप मे नंगे पावँ उसे गुब्बारे बेचते मैंने देखा है हाँ मैंने उस मासूम को जिम्मेदारियां कंधे पर उठाते हुए देखा है हाँ मैंने उसे देखा है दो घूँट प्यास के लिए सूखे पड़े नल पर उम्मीदों का हत्था थामे उसे देखा है जेठ की तपती दुपहरी में नंगे बदन उसे तपते देखा है हाँ मैंने उस मासूम को अपनी कमीज की छावं बनाते देखा है हाँ मैंने उसे देखा है बिलबिलाती हुई भूख को मिटानेके लिए उसे कूड़े के ढ़ेर से कुछ बिनते हुए देखा है हाँ मैंने उसे देखा है अंधेरी रात के गर्म थपेड़ों में उस मासूम को डामर की जलती सड़कों पर सुकून की नींद सोते हुए मैंने देखा है हाँ मैंने उसे देखा है और सिर्फ चुपचाप उसे देखा है #nojoto #nojotohindi #poetry #books #kavishala