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एक बात जब इश्क़ की सुनाई थी चार दफ़ा उसका न

एक  बात  जब  इश्क़  की सुनाई  थी 
चार  दफ़ा  उसका  नाम  दोहराई  थी 

सुनने  को सब  आज भी आतुर रहते
पर जाने क्यों, सुनाकर मैं पछताई थी

इश्क़-इश्क़  बोल कितना नाम पुकारा
बदले में मुझे, सबसे मिली तन्हाई थी

जब गहराई  इश्क़ की  नापने चली मैं
कैसे कहुँ, मैंने वही हर राह भुलाई थी

मोहब्बत से  वो भी  कभी मुकरा नहीं
कुछ बातें मैंने दिल में अपने दबाई थी

नफ़रत नहीं, अब बस ख़ामोश हो गई 
यादों को, मैं  किस्सों  में जो समाई थी 

यहाँ, इरादा इश्क़ का बस इश्क़ ही था
ना समझ मैं ही इश्क़ गलत ठहराई थी

एक  बात  जब  इश्क़  की सुनाई  थी 
चार  दफ़ा  उसका  नाम  दोहराई  थी 

~Akshita Jangid
एक  बात  जब  इश्क़  की सुनाई  थी 
चार  दफ़ा  उसका  नाम  दोहराई  थी 

सुनने  को सब  आज भी आतुर रहते
पर जाने क्यों, सुनाकर मैं पछताई थी

इश्क़-इश्क़  बोल कितना नाम पुकारा
बदले में मुझे, सबसे मिली तन्हाई थी

जब गहराई  इश्क़ की  नापने चली मैं
कैसे कहुँ, मैंने वही हर राह भुलाई थी

मोहब्बत से  वो भी  कभी मुकरा नहीं
कुछ बातें मैंने दिल में अपने दबाई थी

नफ़रत नहीं, अब बस ख़ामोश हो गई 
यादों को, मैं  किस्सों  में जो समाई थी 

यहाँ, इरादा इश्क़ का बस इश्क़ ही था
ना समझ मैं ही इश्क़ गलत ठहराई थी

एक  बात  जब  इश्क़  की सुनाई  थी 
चार  दफ़ा  उसका  नाम  दोहराई  थी 

~Akshita Jangid