मैंने आवाज नहीँ दी तुम्हे जब तुमने मुडके चाहा पीछे। ग़लती किसीकी भी हो, मैं मझबूर नहीँ था तुम्हारी ज़िद मानने। रूकना नहीँ चाहा तुम्हे, आगे बढ़ी चुकी थी तुम मेरी ख़यालों ओर सपनों से। मैंने तुम से प्यार क्या चाहा तो नहीँ, तुम्हारी दूर होने की दर्द से जीने की आदत को झेल सकू, इसलिए रोका नहीँ।