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मेरी ग़ज़ल में अब कोई सेहरा नही मिलता। मुझे तो आईने

मेरी ग़ज़ल में अब कोई सेहरा नही मिलता।
मुझे तो आईने में भी मेरा चेहरा नही मिलता।।

मैं कुछ दिन रह के आया हूँ किसी कातिल की बस्ती में।
कातिल पर मुझे तुझसा कोई गहरा नही मिलता।।

कभी आओ तो ले जाना तुम्हारी याद सब सारी।
मेरी दिल की तिजोरी पर कोई पहरा नही मिलता।।

देखे बहुत हैं हमने भी बीमार कानों के।
कानून सा दूजा कोई बेहरा नही मिलता।।

 मुझे ख्वाहिश थी मैं उस खुद ही से बांध के रख लूँ।
वो पानी है दरिया का कभी ठहरा नही मिलता।।
मेरी ग़ज़ल में अब कोई सेहरा नही मिलता।
मुझे तो आईने में भी मेरा चेहरा नही मिलता।।

मैं कुछ दिन रह के आया हूँ किसी कातिल की बस्ती में।
कातिल पर मुझे तुझसा कोई गहरा नही मिलता।।

कभी आओ तो ले जाना तुम्हारी याद सब सारी।
मेरी दिल की तिजोरी पर कोई पहरा नही मिलता।।

देखे बहुत हैं हमने भी बीमार कानों के।
कानून सा दूजा कोई बेहरा नही मिलता।।

 मुझे ख्वाहिश थी मैं उस खुद ही से बांध के रख लूँ।
वो पानी है दरिया का कभी ठहरा नही मिलता।।