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सियासत से दूर अब इल्जाम लिखते हैं, इश्क का तो कभी


सियासत से दूर अब इल्जाम लिखते हैं,
इश्क का तो कभी जख्म का पैगाम लिखते हैं।
हम गालिब के शहर में रहते हैं ,
अश्को से तो कभी लफ्जों से शेर बदनाम लिखते हैं।

सियासत से दूर अब इल्जाम लिखते हैं,
इश्क का तो कभी जख्म का पैगाम लिखते हैं।
हम गालिब के शहर में रहते हैं ,
अश्को से तो कभी लफ्जों से शेर बदनाम लिखते हैं।