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रामा की व्यथा गुरु शिष्य के अनू

                  रामा की व्यथा

गुरु शिष्य के अनूठे प्रेम की यह कथा उस समय की है -जब धर्मपुरी नामक राज्य में राजा देवधर का राज्य हुआ करता था ,जिनके राज्य में सारी प्रजा अन्न धन से सम्पन्न थी।और चारों ओर अपने राजा की दयालुता,धर्मनिष्ठा,विवेक और सूझबूझ की भूरि भूरि प्रशन्सा करते थकती नही थी । पर दुर्भाग्य वश राजा की कोई सन्तान नही थी । फिर भी राजा अपनी धर्मपत्नि महारानी यशोधरा के साथ मिलकर अपना जीवन प्रजा के लिये समर्पित कर दिया। एक दिन राजा अपने कुछ सैनिकों के साथ अपने राज्य की सीमाओं और प्रजा का हाल चाल जानने के लिये भ्रमण पर निकल पड़ा। जब राजा सीमा क्षेत्र का निरीक्षण कर रहे थे तब अचानक उन्हें किसी शिशु का रुदन सुनाई पड़ा 
राजा ने उस ओर तुरन्त दौड़ लगाई और समीप पहुँच कर देखा एक नन्हा सा बालक अपनी माँ के पास बैठा रो रहा है राजा ने उस बालक को गोद में उठा लिया और जब राजा का ध्यान उसकी माँ की ओर गया तो वह मरणासन्न अवस्था में राजा के हाथ जोड़ कर कुछ कहना चाह रही थी, परन्तु उसका कण्ठ और भाग्य उसका साथ नही दे रहे थे, वह इतना ही बोल पाई -"हम पड़ोसी देश के रहने वाले हैं वहाँ के राजा ने हमें अपने राज्य से निकाल दिया है क्योंकि मैंने अपने बच्चे के लिये दूध चुराया था और हमारे राज्य में चोरी की सजा देशनिकाला होती है वहाँ से भागते हुये लोगों ने हम पर पत्थर बरसाये , मैं जैसे तैसे अपने बच्चे को बचा पाई हूँ,अब आप ही इसके रक्षक हैं।" और इतना कहकर राजा के सामने उसने प्राण त्याग दिये। दयालु राजा ने उसका वैदिक रीति से दाह संस्कार कर बालक को अपने महल ले आया। 

                         //२//
 रामा की व्यथा-१
                  रामा की व्यथा

गुरु शिष्य के अनूठे प्रेम की यह कथा उस समय की है -जब धर्मपुरी नामक राज्य में राजा देवधर का राज्य हुआ करता था ,जिनके राज्य में सारी प्रजा अन्न धन से सम्पन्न थी।और चारों ओर अपने राजा की दयालुता,धर्मनिष्ठा,विवेक और सूझबूझ की भूरि भूरि प्रशन्सा करते थकती नही थी । पर दुर्भाग्य वश राजा की कोई सन्तान नही थी । फिर भी राजा अपनी धर्मपत्नि महारानी यशोधरा के साथ मिलकर अपना जीवन प्रजा के लिये समर्पित कर दिया। एक दिन राजा अपने कुछ सैनिकों के साथ अपने राज्य की सीमाओं और प्रजा का हाल चाल जानने के लिये भ्रमण पर निकल पड़ा। जब राजा सीमा क्षेत्र का निरीक्षण कर रहे थे तब अचानक उन्हें किसी शिशु का रुदन सुनाई पड़ा 
राजा ने उस ओर तुरन्त दौड़ लगाई और समीप पहुँच कर देखा एक नन्हा सा बालक अपनी माँ के पास बैठा रो रहा है राजा ने उस बालक को गोद में उठा लिया और जब राजा का ध्यान उसकी माँ की ओर गया तो वह मरणासन्न अवस्था में राजा के हाथ जोड़ कर कुछ कहना चाह रही थी, परन्तु उसका कण्ठ और भाग्य उसका साथ नही दे रहे थे, वह इतना ही बोल पाई -"हम पड़ोसी देश के रहने वाले हैं वहाँ के राजा ने हमें अपने राज्य से निकाल दिया है क्योंकि मैंने अपने बच्चे के लिये दूध चुराया था और हमारे राज्य में चोरी की सजा देशनिकाला होती है वहाँ से भागते हुये लोगों ने हम पर पत्थर बरसाये , मैं जैसे तैसे अपने बच्चे को बचा पाई हूँ,अब आप ही इसके रक्षक हैं।" और इतना कहकर राजा के सामने उसने प्राण त्याग दिये। दयालु राजा ने उसका वैदिक रीति से दाह संस्कार कर बालक को अपने महल ले आया। 

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 रामा की व्यथा-१

रामा की व्यथा-१