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मन तो हमारा भी करता है,जाने को पाठशाला.. कौन फिरना

मन तो हमारा भी करता है,जाने को पाठशाला..
कौन फिरना चाहता है,इन गलियों मे...
थक चुके नन्हे हाथ कूड़ा-कचरा बीन-बीन के,
अमीर लोग देखते है बडी हैरानी से हमे..!
क्या गरीब इन्सान नही होते??
खा लेते है रूखा-सुखा,
और आता है कोई मेहमान तो पलको पे बिठा लेते है,,,
गरीबी जानती है,घर मे बिछौने कम है...!
मन तो हमारा भी करता है,जाने को पाठशाला..
कौन फिरना चाहता है,इन गलियों मे...
थक चुके नन्हे हाथ कूड़ा-कचरा बीन-बीन के,
अमीर लोग देखते है बडी हैरानी से हमे..!
क्या गरीब इन्सान नही होते??
खा लेते है रूखा-सुखा,
और आता है कोई मेहमान तो पलको पे बिठा लेते है,,,
गरीबी जानती है,घर मे बिछौने कम है...!