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एक पहर बित गई, अजां होने को है। एक ओर फ़र्क कजा हो

एक पहर बित गई, अजां होने को है।
एक ओर फ़र्क कजा होने को है।।

है एहसास दिल को हर खता कि मगर।
बेदार बदबख्त  कहां होने को है।।

Ak Pahar bit gai ajan hone ko hai
Ak or farj kaja hone ko hai

Hai ahsas dil ko har khata ki magar
Bedar badbakth kahan hone ko hai Adnan Rabbani's Shayari • एक #पहर बित गई, #अजां #होने को है।
एक ओर #फ़र्क #कजा होने को है।।

है #एहसास दिल को हर खता कि #मगर।
बेदार #बदबख्त  कहां होने को है।।

Ak #Pahar bit gai #ajan hone ko hai
Ak or farj kaja hone ko hai
एक पहर बित गई, अजां होने को है।
एक ओर फ़र्क कजा होने को है।।

है एहसास दिल को हर खता कि मगर।
बेदार बदबख्त  कहां होने को है।।

Ak Pahar bit gai ajan hone ko hai
Ak or farj kaja hone ko hai

Hai ahsas dil ko har khata ki magar
Bedar badbakth kahan hone ko hai Adnan Rabbani's Shayari • एक #पहर बित गई, #अजां #होने को है।
एक ओर #फ़र्क #कजा होने को है।।

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बेदार #बदबख्त  कहां होने को है।।

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Ak or farj kaja hone ko hai

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