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" कभी वख्त मिले ना.... " कभी वख्त

"  कभी वख्त मिले ना.... " 
             
 कभी वख्त मिले ना.....
कभी वख्त मिले ना,तो उस शक्श के बारे में भी सोच लेना...
 गुस्सा आए तो बेशक किसी खिलौने को वो शक्श समझ कर नाखूनों से नोच देना....
फिर भी गुस्सा शांत न हो तो उठा फेकना खिलौने में समाए उस शक्श को,
 या फिर जला देना उसके प्यार के हर अक्स को....

कभी वख्त मिले ना,
तो अपनी ये आखें मूंद लेना.......
जाने अनजाने में ही सही ,
कभी एक दफा उस शक्श के ख्वाब ढूंढ लेना......

दुनिया भर की ख़ुशी मिलती थी जिसके पास तुझे,
अब वही शक्श तुझे सबसे बुरा लगता होगा
कभी वख्त मिले ना तो ये ही सोच लेना......
तेरे साथ रहने में जो सुरीले गाने सा लगता था तुझे,
तेरे चले जाने के बाद कैसे बेसुरे सा लगता होगा,
कभी वख्त मिले ना तो  ये सोच लेना ......

 एक वख्त  था, जब उसका गुस्सा भी तुझे प्यार बेशुमार सा लगता होगा,
एक वख्त  अब है जब उसका प्यार भी बिलकुल बेकार सा लगता होगा .....
रखता था ज़रा जकड कर तुझे, ताकि झूठ और फरेब की कश्मकश में तू कहीं खो ना जाए,
थोड़ी बंदिशें इस लिए थी लगाई उसने,
 ताकि इस ज़ालिम दुनिया में तुझे कहीं कुछ हो न जाए ,
कभी वख्त मिले तो ये सोच लेना........

 रहता था पास तुम्हारे जब वो,
चेहरे पर नूर तो तुम्हारे भी हुआ करता होगा ये सोच लेना,
साथ रहोगे तुम दोनों हर्फ़ -दर-हर्फ़,
इस बात का गुरूर तो ज़रा उससे भी हुआ करता होगा ये सोच लेना.....

 माना  कुछ बुराइयां थी उसमें पर...
उतना भी बुरा नहीं था जैसा तुझे दिखलाया गया ,
 गलती उसकी है ये सही है, पर गलती उन तरीकों और लोगों की भी तो थी,ये सोच लेना...
तुम्हारे अज़ीज़ नए दोस्तों की मेहरबानी ,
 जिन तरीकों से तुझे उसके खिलाफ भड़काया गया,
कभी वख्त मिले तो ये सोच लेना....

 उतना बुरा भी नहीं था वो,
 कभी वख्त मिले तो ये सोच लेना..... "कभी वख्त मिले ना........"


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"  कभी वख्त मिले ना.... " 
             
 कभी वख्त मिले ना.....
कभी वख्त मिले ना,तो उस शक्श के बारे में भी सोच लेना...
 गुस्सा आए तो बेशक किसी खिलौने को वो शक्श समझ कर नाखूनों से नोच देना....
फिर भी गुस्सा शांत न हो तो उठा फेकना खिलौने में समाए उस शक्श को,
 या फिर जला देना उसके प्यार के हर अक्स को....

कभी वख्त मिले ना,
तो अपनी ये आखें मूंद लेना.......
जाने अनजाने में ही सही ,
कभी एक दफा उस शक्श के ख्वाब ढूंढ लेना......

दुनिया भर की ख़ुशी मिलती थी जिसके पास तुझे,
अब वही शक्श तुझे सबसे बुरा लगता होगा
कभी वख्त मिले ना तो ये ही सोच लेना......
तेरे साथ रहने में जो सुरीले गाने सा लगता था तुझे,
तेरे चले जाने के बाद कैसे बेसुरे सा लगता होगा,
कभी वख्त मिले ना तो  ये सोच लेना ......

 एक वख्त  था, जब उसका गुस्सा भी तुझे प्यार बेशुमार सा लगता होगा,
एक वख्त  अब है जब उसका प्यार भी बिलकुल बेकार सा लगता होगा .....
रखता था ज़रा जकड कर तुझे, ताकि झूठ और फरेब की कश्मकश में तू कहीं खो ना जाए,
थोड़ी बंदिशें इस लिए थी लगाई उसने,
 ताकि इस ज़ालिम दुनिया में तुझे कहीं कुछ हो न जाए ,
कभी वख्त मिले तो ये सोच लेना........

 रहता था पास तुम्हारे जब वो,
चेहरे पर नूर तो तुम्हारे भी हुआ करता होगा ये सोच लेना,
साथ रहोगे तुम दोनों हर्फ़ -दर-हर्फ़,
इस बात का गुरूर तो ज़रा उससे भी हुआ करता होगा ये सोच लेना.....

 माना  कुछ बुराइयां थी उसमें पर...
उतना भी बुरा नहीं था जैसा तुझे दिखलाया गया ,
 गलती उसकी है ये सही है, पर गलती उन तरीकों और लोगों की भी तो थी,ये सोच लेना...
तुम्हारे अज़ीज़ नए दोस्तों की मेहरबानी ,
 जिन तरीकों से तुझे उसके खिलाफ भड़काया गया,
कभी वख्त मिले तो ये सोच लेना....

 उतना बुरा भी नहीं था वो,
 कभी वख्त मिले तो ये सोच लेना..... "कभी वख्त मिले ना........"


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