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हर रोज़ बेच कर आता हूं अपने सपनो को, मानो खुद का ही

हर रोज़ बेच कर आता हूं अपने सपनो को,
मानो खुद का ही दलाल बन गया हूं।।
वो हर कहानी जो लिखी थी मैंने,
मानो उनका ही गुनहगार बन गया हूं ।।
अब ना सपने है, ना कोई ख़्वाहिश,
मानो हर एक जज़्बे से कंगाल बन गया हूं ।।
मेरी हशरत को जवानी के बोझ ने दबाया है,
मानो किसी नशे का तलबगार बन गया हूं।।
और अब तो लोग छू छू कर कहते है मुझे,
के मैं तो जीता जागता कंकाल बन गया हूं।। Rudra pratap Singh  Shravani Agam Ab Bhatia Krishna Chourey Bina Babi
हर रोज़ बेच कर आता हूं अपने सपनो को,
मानो खुद का ही दलाल बन गया हूं।।
वो हर कहानी जो लिखी थी मैंने,
मानो उनका ही गुनहगार बन गया हूं ।।
अब ना सपने है, ना कोई ख़्वाहिश,
मानो हर एक जज़्बे से कंगाल बन गया हूं ।।
मेरी हशरत को जवानी के बोझ ने दबाया है,
मानो किसी नशे का तलबगार बन गया हूं।।
और अब तो लोग छू छू कर कहते है मुझे,
के मैं तो जीता जागता कंकाल बन गया हूं।। Rudra pratap Singh  Shravani Agam Ab Bhatia Krishna Chourey Bina Babi