धीरे धीरे सीख रहा हूं ख्वाहिशों को मारना
धीरे धीरे सीख रहा हूं इस वक़्त को काटना
कुछ है जो अब भी सीखना बाकी है
एक सफर है जो अब भी जीना बाकी है
सफर एक जंगल का जिसे हम कहते है "तौर ए ज़िंदगी", कहने को यहां सुकूं बहुत है पर यहां कौन बैठता है सुकूं से अब
सब मशरूफ है कहीं ना कहीं एक अनजानी सी दौड़ में
जीतने की होड़ में, राही बनने की चाह रखता हूं इस जंगल की राहों का
ना जाने क्यूं भटक में जाता हूं #Zindagi#Journey#safar#khanabadosh