लिखना है एक गीत प्रिये होंठो से लगाकर सुर निकले कोई धुन न रहे न रहे कोई स्वर बस निकले तो मशहूर निकले।। हो शब्द तेरे कल्पनाओं में बंधे और भाव जुड़े मन की तारें जब जुड़ना हो तो जुड़ जायें मन से मन का न गुण निकले।। चाहे गीत लिखो या गजल कविता या गद्य के कुछ भाग जगे पढने वाले जब भी पढ़ ले पढ़कर बस तेरा रूप खिले।। चाहे हास्य करूण श्रृंगार लिखो हो चाहे रौद्र विभत्स व्यथा जब भी साहित्य संवारे तु लेखन से सृजन बस मधुर निकले।। सब देख रहे है तुझको यूँ तुम हो शब्दों की स्वरूप यहाँ जब सामने तुम नजर आओं तब भी बस तुझको शब्द मिलें।। बढती तुम इन राहों में चलों सब रूप रंग छंटा लेकर जब भी इन छंटाओं में देखो तब तब बस तेरा रंग निखरे।। ©राघव_रमण 28/12/19