हमसुखनं उसके संग हो राहा था रकीब धीरे धीरे जां मेरी जां से जा राही थी धीरे धीरे परिंदो ने अमाद दि किनारा नजदिक होने की कश्ती ले गयी मुझे मगर साहिल से दूर धीरे धीरे बनाया था मैने ख्वाबो में प्यार का मंदिर तोड दि उसी बूत ने वो इमारत धीरे धीरे लाया था दिया मै रोशन करने घर अपना उसी ने घर जलाया अपना देखो धीरे धीरे चली थी दुनिया उजाले में साथ अपने छोड गये अपने भी मेरा साथ अंधेरे में धीरे धीरे "अलोक" लिख रहा हैं फलसफा मोहब्बत का खतम हो चली हैं कलम से स्याही धीरे धीरे #धीरे धीरे