"एक तुम" एक तुम और एक मीठी चाशनी जैसी तुम्हारी बातें, उसपे भी तीसरी छुई - मुई जैसी तुम्हारी हसीं, और निग़ाहों की तो बात ही क्या करें, पलकें जो उठें तो लगे सुबह सुनहरी, जो झुकें पलकें तुम्हारी तो लगे शर्माती शाम हो जैसे। "एक तुम" एक तुम और एक मीठी चाशनी जैसी तुम्हारी बातें, उसपे भी तीसरी छुई - मुई जैसी तुम्हारी हसीं, और निग़ाहों की तो बात ही क्या करें, पलकें जो उठें तो लगे सुबह सुनहरी,