मन.. बडा मगरुर है बडा शैतान है मेरा नटखट मन मेरी पहेचान है.. मुरली का सुर है सादगी का नूर है मेरा नटखट मन, जन्नत का हूर है.. चाहता है तुझे सोचता है तुझे दुनिया मे ख्वाबों की, देखता है तुझे मंदिर का दीप है मस्जिद का धूप है मेरा नटखट मन तेरा ही रूप है।.. कविराज।© ntakht mn