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चलते जाऊँ बस दौड़ते रहूं जहाँ बैठ जाऊँ वही हार है !

चलते जाऊँ बस दौड़ते रहूं
जहाँ बैठ जाऊँ वही हार है !

कभी न सहमू कभी न् हारू
बस इसी भरोसे में मेरी जान है !!

महज कुछ ही दूरी पर मंजिल है अब

जरा खिचक गई तो छीन भी लूंगा
कांटे ही तो है कौनसी तलवार की धार है !!
चलते जाऊँ बस दौड़ते रहूं
जहाँ बैठ जाऊँ वही हार है !

कभी न सहमू कभी न् हारू
बस इसी भरोसे में मेरी जान है !!

महज कुछ ही दूरी पर मंजिल है अब

जरा खिचक गई तो छीन भी लूंगा
कांटे ही तो है कौनसी तलवार की धार है !!