" इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी , जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना , मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या , सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना , नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम , वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी , जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना , मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या , सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना , नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम , वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." --- रबिन्द्र राम