वो दौर भी क्या दौर थे ,जब दोस्त और उनके सोर थे सर नेम से अपने नेम थे , तब ड्रेस भी अपने सेम थे ना FUTURE की फिकार थी , बस बकचोदी के ड्रीम थे UNUTY भी साला तभी दिखती , जब आते क्लास गेम के वो पहला पहला प्यार हमारा , कॉपी के BAT , कागज की गेंद का जुगाड़ हमारा , वो पेनसील वाली जलन थी ,और ना हम में सरम थी , तब दिन भी कुछ और थे , वो दौर भी क्या दौर थे !