जब आंख के एक वार से संसार तक हिलने लगे चलने लगे जब उंगलिया रफ्तार तक थमने लगे जब रास्तों में बे वजह गिरने लगे उठने लगे तब आंख के उस वार का आधार होना चाहिये इतनी कटीली सी अदा आभार होना चाहिये।। अशोक सिंह