साच्चा अम्रत काया माहीं मन पीवै भाय सुभाई हे ऐ पुरुष सच्चा अम्रत तेरे अन्दर है मगर हम न संत की बात ही नहीं सुनते और सुनते भी हैं तो विचार नहीं करते