मोहब्बत क्या लिखुँ जो मैं एक अधूरा साज हुँ। बस इक निजी ज़िंदगी और उजङे आशियाने के अल्फाज लिखता हुँ।। ।। इस युग का मिरज़ा गालिब।। इक अधूरी जिंदगी