रो देता हूँ मैं,, कि अपनी आँखें सुजा लेता हूँ... गमों का नहीं मिलता कोई शागिर्द,, तो खुद ही खुद को बहला लेता हूँ.... बड़े नाकिस्म का दौर चल रहा है,, अपने मंजर का... जब मर्जी तिंका समेट लेता हूँ,, जब मर्जी आंधियों से आशियाँ उड़ा लेता हूँ... रो देता हूँ मैं,, कि अपनी आँखें सुजा लेता हूँ... गमों का नहीं मिलता कोई शागिर्द,, तो खुद ही खुद को बहला लेता हूँ.... बड़े नाकिस्म का दौर चल रहा है,, अपने मंजर का...