जीने को ज़िन्दगी कुछ ऐसा हुनर माँगता हूँ रहने को तनहा एक अलग शहर माँगता हूँ । रस्ता है काफी लम्बा और भीड़ भी बेहिसाब है पाने को मंज़िल मैं एक तनहा सफ़र माँगता हूँ । आँखे थक सी गईं हैं एक से ही नज़ारे को देख कुछ अलग सा दिखा. दे वो नज़र माँगता हूँ । किस्मत बनाने में दिन बीतते जा रहे हैं जो आ के ठहर जाये वो एक पहर माँगता हूँ । चल तो सभी रहे पर इक दूजे की कदर ही नही बेक़दरों से भी मिले थोड़ी वो कदर माँगता हूँ । ज़िन्दगी ठूँठ हो गई हरियाली झड़ गई "अनगढ़" जिसकी छाँव में रहूँ वो घना शजर माँगता हूँ । जीने को ज़िन्दगी कुछ ऐसा हुनर माँगता हूँ रहने को तनहा एक अलग शहर माँगता हूँ । रस्ता है काफी लम्बा और भीड़ भी बेहिसाब है पाने को मंज़िल मैं एक तनहा सफ़र माँगता हूँ । आँखे थक सी गईं हैं एक से ही नज़ारे को देख कुछ अलग सा दिखा दे वो नज़र माँगता हूँ ।