आँखे गीली है, होंठ सूखे है जीवन चक्र भी कैसा कुछ सूते है, तो कुछ भूखे है हम सब मतलबी है, किसी कि परवाह नही सब कुछ जानकर बैठे है अंजान बने क्या अपनों का दर्द देखने की निगाह नही इस दरिद्रता को हमे ही मिटाना है बच्चो को कुपोषण के शिकार से बचाना है ऐसा भारत देश फिर लाना है जहाँ सोने की चिड़िया का चहचाना है फौगाट का कहना गलत तो नही होगा, अगर हम सब अनेक से एक ही जाये सबको अपना समझे , और भारतवासियो अपनों में ही नेक हो जाये ombir phogat #poem#talk#thought 29