कितनी शिद्दत से रह रहे थे यह आंसू इन आखो में गैरो की तरह इन्हें गिरा कर यह आँख पी सारे गम गयी, मौसमों के बिना तो इस हवा का भी कोई बजूद नही मानसून के जाते ही यह भी थोड़ी थम गई, जब तक बादल में थी यह बारिश उसकी महबूबा बनके रही ज़मीन पर गिरते ही कम्भख्त ज़मीन में ही रम गयी, दिन के उजालो में सूरज की वाहः वाहः हो रही थी रात होते ही चाँद की चाँदनी में उसकी चमक हो कम गयी, Pratibha Tiwari(smile)🙂 simo ❤️ Arsh Dilip Makwana Rahulmeena92