रोजे से ईद तक मुकद्दस महीने को हम बड़े एहतराम से मनाते हैं क्या हम उस रब के पैगाम को भी समझ पाते हैं इंसानों की दुनिया को कोशिश है इंसानियत सिखाने की भूखे प्यासे तरसते लोगों की जिंदगी को समझ पाने की महीने भर के रोजे को हम त्योहार समझते हैं सोचो जो गरीब सालों भर भूख को तरसते हैं एक दिन की ईद हमें ढेरों खुशियां ले आती है अपनों के घर की सेवइयां रुह को मीठी कर जाती है हाथ रखो तुम उनके सर पर जिनकी जिंदगी में है प्यास भरी रात गुजरती है उम्मीद पर कल ना रहेगा घर में फांका कसी समझ सको जो इस्लाम को दर्द बांटती है अपनों की हर घड़ी जिता हर शख्स है जीवित रहे वही कर सके इंसानियत की रहनुमाई ©Farah Naz #massageofishlam