भीड़ बनकर चलते है जमाने वाले एक भेड़ की तरह,किसी को अपनी नजर से देखना भी नही आता है,जहा चिंगारी की गुंजाइश न हो वहां आग लग जाती है,अपना घर न जले बस फिक्र इसकी है, सारा जमाना इसी के फिक्र में
चलते जाता है और सबके साथ सबका घर जल जाता है.
......कुँवर सुरेन्द्र
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