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कुछ अजनबी होते लम्हों से, यादों के हिसाब लगाता दिल

कुछ अजनबी होते लम्हों से,
यादों के हिसाब लगाता दिल ।
न चुप होता न खुद सोता,
बस सारी रात जगाता दिल ।।
-सुमित उपाध्याय कुछ अजनबी होते लम्हों से,
यादों के हिसाब लगाता दिल ।
न चुप होता न खुद सोता,
बस सारी रात जगाता दिल ।।
सुमित उपाध्याय
कुछ अजनबी होते लम्हों से,
यादों के हिसाब लगाता दिल ।
न चुप होता न खुद सोता,
बस सारी रात जगाता दिल ।।
-सुमित उपाध्याय कुछ अजनबी होते लम्हों से,
यादों के हिसाब लगाता दिल ।
न चुप होता न खुद सोता,
बस सारी रात जगाता दिल ।।
सुमित उपाध्याय

कुछ अजनबी होते लम्हों से, यादों के हिसाब लगाता दिल । न चुप होता न खुद सोता, बस सारी रात जगाता दिल ।। सुमित उपाध्याय #Poetry