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मैं जो साँसों में उतर जाता ,तो बात कुछ और होती मैं

मैं जो साँसों में उतर जाता ,तो बात कुछ और होती
मैं जो निग़ाहों में उतर जाता, तो बात कुछ और होती

मैं तुम्हारे दिल की गलियों से चला जाता,तो तुम रोती
तुम जो दिल तोड़कर चली जाती,तो बात कुछ और होती

मैं तुम्हारी यादों में ही रहता ,यदि वो शाम ना होती
तुम जोशाम होते ही चली आती,तो बात कुछ और होती

मैं तुम बिन था अधूरा के जैसे मीन पानी होती
तुम जो दरिया ही बन जाती तो बात कुछ और होती

मैं सपना बन के रह जाता जो तुम नींद ना होती
तुम जोअपना कह के खो जाती,तो बात कुछ और होती
मैं जो साँसों में उतर जाता ,तो बात कुछ और होती
मैं जो निग़ाहों में उतर जाता, तो बात कुछ और होती

मैं तुम्हारे दिल की गलियों से चला जाता,तो तुम रोती
तुम जो दिल तोड़कर चली जाती,तो बात कुछ और होती

मैं तुम्हारी यादों में ही रहता ,यदि वो शाम ना होती
तुम जोशाम होते ही चली आती,तो बात कुछ और होती

मैं तुम बिन था अधूरा के जैसे मीन पानी होती
तुम जो दरिया ही बन जाती तो बात कुछ और होती

मैं सपना बन के रह जाता जो तुम नींद ना होती
तुम जोअपना कह के खो जाती,तो बात कुछ और होती