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ये बादल बस तन भिगोते हैं , मन क्यूँ नहीं , हजार द

ये बादल बस तन भिगोते हैं , मन क्यूँ नहीं , 
हजार दरिया मिलते हैं जिसमें , 
फिर क्यूँ समन्दर ये भरता नहीं ,
जिनकी बातें करता है ये दिल , 
फिर क्यूँ वो शख़्स बात करता नहीं , 
अभी भी ठहरी है एक बीती हुई शाम , 
मन उस मोड़ से अभी तक शायद चला नहीं  , 


मलाल की कुछ धूल , 
कुछ सूखे हुए फूल , 
जैसे अब भी किताबों में हो तुम ,
बस गुलज़ार की नज़्मों सी , मुकम्मल हो तुम..! 


@Pandey .A. Harsh                           #Safarnama Aadya
ये बादल बस तन भिगोते हैं , मन क्यूँ नहीं , 
हजार दरिया मिलते हैं जिसमें , 
फिर क्यूँ समन्दर ये भरता नहीं ,
जिनकी बातें करता है ये दिल , 
फिर क्यूँ वो शख़्स बात करता नहीं , 
अभी भी ठहरी है एक बीती हुई शाम , 
मन उस मोड़ से अभी तक शायद चला नहीं  , 


मलाल की कुछ धूल , 
कुछ सूखे हुए फूल , 
जैसे अब भी किताबों में हो तुम ,
बस गुलज़ार की नज़्मों सी , मुकम्मल हो तुम..! 


@Pandey .A. Harsh                           #Safarnama Aadya