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सम्मान हमेशा जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि

सम्मान हमेशा  जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना॥

रामचरित मानस में भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता के संदर्भ में यह चौपाई मनुष्य को ज्ञान देती है कि मित्रता निभाने वाले की भगवान भी सहायता करते हैं। जो लोग मित्र या फिर दूसरों के दुख को देखकर दुखी नहीं होते, उन लोगों की मदद नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को देखने से भी पाप लग जाता है। जो लोग अपने दुख को भूलकर दूसरों की सहायता करते हैं, ईश्वर स्वयं उसकी मदद करते हैं।

©mishraji मित्रता सबसे बहुमुल्य रिश्ता है 
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सम्मान हमेशा  जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना॥

रामचरित मानस में भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता के संदर्भ में यह चौपाई मनुष्य को ज्ञान देती है कि मित्रता निभाने वाले की भगवान भी सहायता करते हैं। जो लोग मित्र या फिर दूसरों के दुख को देखकर दुखी नहीं होते, उन लोगों की मदद नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को देखने से भी पाप लग जाता है। जो लोग अपने दुख को भूलकर दूसरों की सहायता करते हैं, ईश्वर स्वयं उसकी मदद करते हैं।

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keshavmishra2583

mishraji

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