उम्मीदों की कश्ती, दुवाओं की पतवार। ताबीर-ए-ख़्वाब की कोशिशें, और बेरहम किस्मत की मार। शुक्रिया ए जिंदगी; तेरी हर ठोकर ने जीने का जज़्बा और मजबूत कर दिया। गुलज़ार साहब की त्रिवेणी को माध्यम बना कर लिखने की एक कोशीश। त्रिवेणी का तीसरा मिसरा पहले दोनों मिसरों के मेहफूम को निखारता है या इज़ाफ़ा करता है या उस पर 'comment' करता है।