शाम से इन्तेज़ार रेहता हैं कि कब रात हो आन्खे बन्द हो मेरी और उनसे मुलाकात हो हकिकत में तो अब साथ नहीं हम बस हैं एक यहि रास्ता,जहा उनसे बात हो, शाम से इन्तेज़ार रेहता हैं कि कब रात हो सुरज ढले जल्द और फिर से चाँदनी रात हो यादो मे खुद के चाँद कि खो जाऊ मै भी देखु उस्के ख्वाब हि,कुछ इस तरह कि मेरी रात हो, शाम से इन्तेज़ार रेहता हैं कि कब रात हो बादलो में लुका छिपी कर रहा चाँद हो यु तो उन्से मिले एक वक़्त हुआ अब इस चादँ को हि देख,मुझे रोज़ उन्का दिदार हो, -vikash_my word📝 शाम से इन्तेज़ार रेहता हैं कि कब रात हो आन्खे बन्द हो मेरी और उनसे मुलाकात हो हकिकत में तो अब साथ नहीं हम बस हैं एक यहि रास्ता,जहा उनसे बात हो, शाम से इन्तेज़ार रेहता हैं कि कब रात हो