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तृप्ति दुनिया के किसी कोने में उन दो लोगों में बै

तृप्ति

दुनिया के किसी कोने में
उन दो लोगों में बैर हुआ,
जोगी बोला, जोगन से कि
था प्रेम कभी, अब ज़हर हुआ,
सागर, नदिया, सूरज,चंदा
कितने विशाल, ना अंत कोई,
हम प्रेम की पूजा हो जाते 
गर होता जीवन संत कोई,
एक नित्य दोपहरी शामों में
मैंने याद किए वो पल बीते,
जो कुरेद रहें हैं अंदर तक
ये क्षण बिन तेरे हैं रीते,
पर फिर भी सारी टीस लिए
मैं हर रस्ता तन्हा नापूं,
मेरे हाथ में जो एहसास अभी
उसको पकडूं उसको थामूं,
एक पहन के पैमद पीली सी
जोगी सा पागल हो जाऊं,
मन बांध के उसकी बंसी से
उसकी दुनिया में खो जाऊं,
इस दुनिया में ध्वनियां हज़ार
है गीत एक ही जीवन का,
आंखें मूंदों, एक ध्यान मढो
धागा जोड़ो उससे मन का ।

:– शिवम् नाहर

©Shivam Nahar तृप्ति #peace
तृप्ति

दुनिया के किसी कोने में
उन दो लोगों में बैर हुआ,
जोगी बोला, जोगन से कि
था प्रेम कभी, अब ज़हर हुआ,
सागर, नदिया, सूरज,चंदा
कितने विशाल, ना अंत कोई,
हम प्रेम की पूजा हो जाते 
गर होता जीवन संत कोई,
एक नित्य दोपहरी शामों में
मैंने याद किए वो पल बीते,
जो कुरेद रहें हैं अंदर तक
ये क्षण बिन तेरे हैं रीते,
पर फिर भी सारी टीस लिए
मैं हर रस्ता तन्हा नापूं,
मेरे हाथ में जो एहसास अभी
उसको पकडूं उसको थामूं,
एक पहन के पैमद पीली सी
जोगी सा पागल हो जाऊं,
मन बांध के उसकी बंसी से
उसकी दुनिया में खो जाऊं,
इस दुनिया में ध्वनियां हज़ार
है गीत एक ही जीवन का,
आंखें मूंदों, एक ध्यान मढो
धागा जोड़ो उससे मन का ।

:– शिवम् नाहर

©Shivam Nahar तृप्ति #peace
shivamnahar5045

Shivam Nahar

Bronze Star
Growing Creator

तृप्ति #peace #कविता