पराधीन नहिं सुख सपनेहूँ क्या आनंद स्वतंत्र का कहना |
श्वान नहीं तू सिंह है यौवन फिर क्यों परबंधन में रहना ||
कह गए तिलक तो आज़ादी है जन्मसिद्ध अधिक हमारा |
यदि स्वतंत्र रहने में दुःख है फिर भी वह दुःख सबसे प्यारा ||
पराधीनता में रहकर तो सुख सौभाग्य भी न सहना,
पराधीन नहिं सुख सपनेहूँ क्या आनंद स्वतंत्र का कहना ||
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