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ख़ता-ए-दास्तां हुयी

                              
ख़ता-ए-दास्तां हुयी हो कोई हमसे तो माफ करना  
ज़ुलमात के इस अंधेरे में चिराग बन कर उभरना
फलसफे अब सभी कि मजबुत हैं इन हवाओं से कहदो  
ठेहरो...इन हवाओं को भी नये साल पे एक पेड़ दामन में धर दो..!!    

         ""मुकेश  ऋषि ""
                              
ख़ता-ए-दास्तां हुयी हो कोई हमसे तो माफ करना  
ज़ुलमात के इस अंधेरे में चिराग बन कर उभरना
फलसफे अब सभी कि मजबुत हैं इन हवाओं से कहदो  
ठेहरो...इन हवाओं को भी नये साल पे एक पेड़ दामन में धर दो..!!    

         ""मुकेश  ऋषि ""