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जीवित रहते हुए ही मोक्ष प्राप्त कर लेना वास्तविक ज

जीवित रहते हुए ही मोक्ष प्राप्त कर लेना वास्तविक जीवन मुक्ति हमारे धर्म शास्त्रों ने चार पुरुषार्थ मैं मोक्ष को अंतिम पड़ाव माना है जिसे सामान्य रूप से मृत्यु पश्चात स्थित माना जाता है इसका तात्पर्य है कि इस भवसागर में जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर सभी दुखों से छुटकारा पा लेना आते मुख की इच्छा सभी मन में होती है जो कि यह मृत्यु के बाद की स्थिति है तो कोई इसका अनुभव नहीं बता सकता इसके विपरीत यदि मनुष्य चाहे तो वह जीवन ही मुक्त होकर एक विलक्षण आनंद की अनुभूति कर सकता है फिर उस संसार की दुख भी पीड़ित नहीं करते यही जीवन मुक्ति दशा है जीवन में इस दशा के लिए द्वार खुले हुए हैं परंतु उन्हें हमें स्वयं ही बंद कर रखा है इन्हें उद्घाटित करने के लिए धर्म ग्रंथों मैं उपाय बताए गए हैं जैसे संसार में रहते हुए भी मनुष्य यदि स्वार्थी और अहंकारी को त्याग कर स्वयं को सांसारिक परी पंचों से मुक्त कर ले तो वे जीवन मुक्त हो सकता है यद्यपि यह आसान नहीं है पर इतना कठिन भी नहीं है गीता के अनुसार सुख दुख लाभ हानि आदि अवस्था में सम्मिलित बुद्धि से काम करते हुए मनुष्य जो अपने सभी कर्म और फल परमात्मा को अर्पित कर देता है तब वह उनसे जनित सुख-दुख समस्त भाव से मुक्त हो जाता है ऐसी स्थिति में उसे ना तो कीर्तन का अभिमान रहता है और ना ही फल की चिंता

©Ek villain #जीवन मुक्ति का द्वार है

#Connection
जीवित रहते हुए ही मोक्ष प्राप्त कर लेना वास्तविक जीवन मुक्ति हमारे धर्म शास्त्रों ने चार पुरुषार्थ मैं मोक्ष को अंतिम पड़ाव माना है जिसे सामान्य रूप से मृत्यु पश्चात स्थित माना जाता है इसका तात्पर्य है कि इस भवसागर में जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर सभी दुखों से छुटकारा पा लेना आते मुख की इच्छा सभी मन में होती है जो कि यह मृत्यु के बाद की स्थिति है तो कोई इसका अनुभव नहीं बता सकता इसके विपरीत यदि मनुष्य चाहे तो वह जीवन ही मुक्त होकर एक विलक्षण आनंद की अनुभूति कर सकता है फिर उस संसार की दुख भी पीड़ित नहीं करते यही जीवन मुक्ति दशा है जीवन में इस दशा के लिए द्वार खुले हुए हैं परंतु उन्हें हमें स्वयं ही बंद कर रखा है इन्हें उद्घाटित करने के लिए धर्म ग्रंथों मैं उपाय बताए गए हैं जैसे संसार में रहते हुए भी मनुष्य यदि स्वार्थी और अहंकारी को त्याग कर स्वयं को सांसारिक परी पंचों से मुक्त कर ले तो वे जीवन मुक्त हो सकता है यद्यपि यह आसान नहीं है पर इतना कठिन भी नहीं है गीता के अनुसार सुख दुख लाभ हानि आदि अवस्था में सम्मिलित बुद्धि से काम करते हुए मनुष्य जो अपने सभी कर्म और फल परमात्मा को अर्पित कर देता है तब वह उनसे जनित सुख-दुख समस्त भाव से मुक्त हो जाता है ऐसी स्थिति में उसे ना तो कीर्तन का अभिमान रहता है और ना ही फल की चिंता

©Ek villain #जीवन मुक्ति का द्वार है

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Ek villain

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