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मैं रोया, तूं मुझपर ही हँस दी मुझे पीछे छोड़ तूं आ

मैं रोया, तूं मुझपर ही हँस दी
मुझे पीछे छोड़ तूं आगे आगे चल दी, 
यादों का गट्ठर बोझिल सा 
है कर दिया क्यूँ बता मुझे, 
वादों की हसीन महफिल में 
बस दर्द संजोता फिर रहा मैं, 
मैं इस बोझ के तले थक जाता हूँ बार बार, 
ऐ ज़िंदगी, ये कैसी सज़ा दी मुझे तूने।

             सोमेश समय जयेश कुमार 'जीवन'
मैं रोया, तूं मुझपर ही हँस दी
मुझे पीछे छोड़ तूं आगे आगे चल दी, 
यादों का गट्ठर बोझिल सा 
है कर दिया क्यूँ बता मुझे, 
वादों की हसीन महफिल में 
बस दर्द संजोता फिर रहा मैं, 
मैं इस बोझ के तले थक जाता हूँ बार बार, 
ऐ ज़िंदगी, ये कैसी सज़ा दी मुझे तूने।

             सोमेश समय जयेश कुमार 'जीवन'