खनकती हैं जब भी चुडियाँ इन हाँथों में....,,,
तुम्हारी यादों की कसक सी उठ जाती है....!!
क्या कहूँ की कितनी कशिश है...
इन हरी काँच की चुडियों में.....!!
इनमें भी तेरा ही अक्श नजर आता है.....!!
सावन को भी रुमानियत दे जाती है ये चुडियाँ...,,,
मेरे सुखे बंजर दिल पर बरखा की बौछार सा एहसास दिला जाती है ...!!