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नज़्में कोई ऐसे ही नहीं लिखता गजलें कोई यु ही नहीं

नज़्में कोई ऐसे ही नहीं लिखता
गजलें कोई यु ही नहीं कागज़ पे उतारता,
ये उन तूफ़ानों की देन हैं
जो दिल में उटते हैं और आवाज़ भी नहीं करते
नज़्में कोई ऐसे ही नहीं लिखता
गजलें कोई यु ही नहीं कागज़ पे उतारता,
ये उन तूफ़ानों की देन हैं
जो दिल में उटते हैं और आवाज़ भी नहीं करते