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मैं थका हारा कहाँ तक चल सकूँगा यूँ अकेले अब नही मु

मैं थका हारा कहाँ तक चल सकूँगा यूँ अकेले
अब नही मुझमें बची फिर ज़िन्दगी की चाह कोई

साँस बोझिल हो रही है हर कदम पर बिन तुम्हारे
मरघटों की चीख ने भी पाँव अपने हैं पसारे
लाश काँधे पर न जाने कब तलक अपने हैं ढोई
मैं थका हारा कहाँ तक...

मैं थका हारा कहाँ तक चल सकूँगा यूँ अकेले अब नही मुझमें बची फिर ज़िन्दगी की चाह कोई साँस बोझिल हो रही है हर कदम पर बिन तुम्हारे मरघटों की चीख ने भी पाँव अपने हैं पसारे लाश काँधे पर न जाने कब तलक अपने हैं ढोई मैं थका हारा कहाँ तक... #whenIpendown

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