ग़ज़ल मुहब्बत इबादत है जिसकी नज़र में। रहेगा हमेशा रूहानी असर में। ये शानो ये शौकत हैं दुनिया के मेले अकेले ही जाना पड़ेगा सफर में। मिलेगी न काफिर को मंजिल सनम की भटकता रहेगा यूं ही रहगुज़र में। अदावत करोगे तो नफरत मिलेगी मिलेगी मुहब्बत मुहब्बत के घर में। गुनाहों से बचना न करना खताएं पयाम-ए-मुहब्बत ले जाना नगर में। पराजय मिले गर तो हिम्मत न खोना। बजेगा नगाड़ा ज़फ़र की डगर में। तमन्ना जो करना गुलिस्तां की 'मीरा' उगाना न कांटे किसी भी शजर में। मनजीत शर्मा 'मीरा' मुहब्बत इबादत है 🙏