अपनी बेटी के बलात्कारियों को सज़ा दिलाने के लिए उस महिला ने कड़े संघर्ष कियें। अनेकानेक परेशानियों का सामना करती निर्भया की माँ आशा ने कभी आस न छोड़ी और आज सुबह दोषियों के अंजाम तक पहुँचाने के साथ हीं निर्भया को देर से हीं सही पर न्याय मिल गया।
आशा जी के प्रयासों को याद करते वक़्त कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा दिनांक 30-10-1956 को लिखी उनकी कविता "जलाते चलो ये दीये स्नेह भर-भर" स्वतः याद आ जाती है। यह कविता हमें, विपरीत परिस्थितियों में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है।
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जलाते चलो ये दिये स्नेह भर-भर
कभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा।
भले शक्ति विज्ञान में है निहित वह
कि जिससे अमावस बने पूर्णिमा-सी; #Hope#poem#audio#Arsh