मंजिलें वो भी उसने तय की हैं, जो थीं नामुमकिन, उसने ज़मींन को , आसमान करके रखा है... मेरे वजूद का एक हिस्सा है वो भी दानिश पर मेरी जिंदगी को इक इम्तहान कर के रखा है सच को सच ही कहता है, झूठ बोलता ही नहीं, सारी बस्ती को भी पशेमान करके रखा है... ये दुनिया इश्क को कत्ल करने पे आमादा है, उसने इस दिल को इश्क का सामान करके रखा है.. मुझसे क्या पूछते हो , मुझको पता है उसका पता मेरे साथ ही उसने , अपना मकान करके रखा है.. वो आप ही के अंदर है, उसको कहते हैं ज़मीर, जिसने इंसान को आज भी, इंसान करके रखा है.... कौन है वो