कितने दिनों से मुझे कोई हिचकी नही आई लगता है कभी किसी को मेरी याद नही आई। इल्तेजा की हद ही हो गयी है अब तो,खड़ी थी दरवाजे पे आज भी कोई चिट्ठी नही आई। खुली आँखों मे आंसू रहते या ख्बाब हमारे हमने आंख लगाई बहुत मगर नींद नही आई। अपने ही नाखूनों से खुद को नोचने का दिल है धोखे खा खा कर भी मैं इश्क़ से बाज़ नही आई।