विचित्र मन... आज बहुत विचित्र मन से तन में सेलाब सा उठने लगा, कोशिश भी की मगर इससे निकल न सका, बड़ी मुसीबत से हाल मेरा गुनहा करने लगा, फिर क्यों यकीनन मुझे यह अफसोस होने लगा, न रुसवाई का मकसद दिल मे छुपा था, न एक अश्क़ मन मे गिरा था, लेकिन यादों की कहानी में तड़प बहुत होने लगी, फिर क्यों किसी से आज रुसवाई होने लगी, न किआ कभी गरूर मन मे न किआ कोई दर्द बया, आज फिर क्यों मन मेरा उदास होने लगा, सोचते थे कि काश क्या जिंदगी होंगी मेरी, आज जिंदगी मेरी क्यों अनजान होने लगी..२ #विचित्र मन #पुरानी यादें...