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विचित्र मन... आज बहुत विचित्र मन से तन में सेलाब

विचित्र मन...

आज बहुत विचित्र मन से तन में सेलाब सा उठने लगा,
कोशिश भी की मगर इससे निकल न सका,
बड़ी मुसीबत से हाल मेरा गुनहा करने लगा,
फिर क्यों यकीनन मुझे यह अफसोस होने लगा,
न रुसवाई का मकसद दिल मे छुपा था,
न एक अश्क़ मन मे गिरा था,
लेकिन यादों की कहानी में तड़प बहुत होने लगी,
फिर क्यों किसी से आज रुसवाई होने लगी,
न किआ कभी गरूर मन मे न किआ कोई दर्द बया,
आज फिर क्यों मन मेरा उदास होने लगा,
सोचते थे कि काश क्या जिंदगी होंगी मेरी,
आज जिंदगी मेरी क्यों अनजान होने लगी..२ #विचित्र मन
#पुरानी यादें...
विचित्र मन...

आज बहुत विचित्र मन से तन में सेलाब सा उठने लगा,
कोशिश भी की मगर इससे निकल न सका,
बड़ी मुसीबत से हाल मेरा गुनहा करने लगा,
फिर क्यों यकीनन मुझे यह अफसोस होने लगा,
न रुसवाई का मकसद दिल मे छुपा था,
न एक अश्क़ मन मे गिरा था,
लेकिन यादों की कहानी में तड़प बहुत होने लगी,
फिर क्यों किसी से आज रुसवाई होने लगी,
न किआ कभी गरूर मन मे न किआ कोई दर्द बया,
आज फिर क्यों मन मेरा उदास होने लगा,
सोचते थे कि काश क्या जिंदगी होंगी मेरी,
आज जिंदगी मेरी क्यों अनजान होने लगी..२ #विचित्र मन
#पुरानी यादें...
kavivikramsingh2407

ViRan

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