मुझपे, तुम भी तो मरते थे।। कहो ना, मुझपे, तुम भी तो मरते थे। थाम हाथ संग, तुम भी तो चलते थे। कहीं हो ना जाये आम मुहब्बत हमारी, मेरे संग संग तब, तुम भी तो डरते थे। हाथों पे गुदवाया था नाम हम दोनों ने, ये फ़िज़ूल ज़िद्द, तुम भी तो करते थे। पल भर को जुदा होना था गंवारा नहीं, उन पलों में आँहें, तुम भी तो भरते थे। एक जिस्म दो जान वाली सारी बातें, कंधे पे रख सर, तुम भी तो कहते थे। लगे रहना फोन पे करनी बातें लम्बी, पापा की डांट, तुम भी तो सहते थे। कॉलेज क्लास में बैठ, छुपकर सबसे, मेरे सारे मेसेजेज, तुम भी तो पढ़ते थे। चलो छोड़ो, छला गया मैं तो इश्क में, सिर्फ वक़्त नहीं, तुम भी तो छलते थे। मैं आज कर रहा हूँ शिकायत बस, ये ही शिकायतें, तुम भी तो करते थे। कुछ नहीं कहने को, है बाकी याद, अभी मैं, कभी, तुम भी तो ढलते थे। ©रजनीश "स्वछंद" मुझपे, तुम भी तो मरते थे।। कहो ना, मुझपे, तुम भी तो मरते थे। थाम हाथ संग, तुम भी तो चलते थे। कहीं हो ना जाये आम मुहब्बत हमारी, मेरे संग संग तब, तुम भी तो डरते थे।