जब भी कोई मंज़िल या कोई मुक़ाम आया, ज़ुबान पर मेरी बस तेरा ही इक नाम आया ! जब कभी फूल मिला राहों में पेड़ों के तले, यूँ लगा मुझको कि तेरा मुझे पैग़ाम आया ! ख़ुशबू आ जाती है ख़्वाबों में आने से तेरे, जो तू मुस्काये लगे सजदे का इनाम आया ! अब तो आ जाओ तुम ख़्वाबों से बाँहों में मेरी, दिल के मैख़ाने का अब आख़िरी ये जाम आया ! तारे लाखों खिलें रातों को आसमां में तो क्या, मगर इक चाँद के खिलने से ही आराम आया ! ✍️नवीन