तुम रौनक इस जहां की मैं सुना एक सड़क सा तु इसके किनारे रुक जाए हर दृश्य में रंग भर जाए घटाओं की जरूरत कहां जब तेरी जुल्फें लहराए तुझको देखूं एकटक मैं बन बिजली का खंबा क्रीम सूट , उन्मुक्त बांहें देख भरता मैं हूं आहें कर महसूस खुश्बू हवा में लगे जमीन पर उतरी रंभा।। ©Mohan Sardarshahari सोनल